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भक्ति और श्रद्धा जहां जन्म लेती है वहां संत का स्वयं आगमन होता है:फलाहारी बाबा

बाराचवर ब्लाक स्थित शिव मंदिर के पास चल रहे श्री राम कथा में शिवरामदास महाराज उपाख्य फलाहारी बाबा ने श्रद्धालुओं को बताया कि अंतिम इच्छा ही पुनर्जन्म का कारण बनती है। अंत में जैसी मति होगी वैसे ही आप की गति होगी। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि जीव जैसा स्मरण करता हुआ शरीर त्यागता है उस भाव से भावित होकर वैसा ही जन्म और योनि ग्रहण करता है। सती अंतिम समय भगवान शिव का स्मरण करते हुए शरीर छोड़ी थी इसलिए पार्वती के रूप में जन्म हुआ ।श्रीमद्भागवत के सिद्ध जड़ भरत मृग का स्मरण करते हुए अंतिम श्वास लिए थे जिसके कारण मृग योनी को प्राप्त हुए। धरती एक रंगमंच है हम सब जीव एक कलाकार है जीवन भर जैसा अभ्यास होगा अंतिम समय में उसी का स्मरण होगा। शरीर के दो यंत्र हैं दिल और दिमाग। दिमाग में जगदीश को नहीं बल्कि जगत को रखना चाहिए और दिल में जगदीश को रखना चाहिए। ब्रह्म तर्क का विषय नहीं है जहां मन बुद्धि और वाणी अवरुद्ध हो जाती है वहां से ब्रह्म की शुरुआत होती है।दिमाग से बात उतर जाती है लेकिन दिल में जो बात उतर जाती है फिर कभी उतरती नहीं है। भक्ति और श्रद्धा जहां जन्म लेती है वहां संत का स्वत: आगमन होता है श्रद्धा रूपी पार्वती और भक्ति रूपी सीता के जन्म लेने पर देवर्षि नारद का आगमन स्वत: हुआ। उपवास का मतलब पेट को खाली रखना नहीं बल्कि (उप समीपे वसति इति उपवास:) जो ईश्वर के सानिध्य सामीप्य संनिकट यानी स्मरण और नाम का उच्चारण करते हुए जो समय व्यतीत करता है उसी का नाम उपवास है ।फलाहार का अभिप्राय भोजन जब नीरस होता है तो भजन सरस होता है और भोजन सरस होगा तो भजन निरस होगा। अन्न का प्रभाव भी मन पर पड़ता है। शुद्ध और सात्विक भोजन लेने से विचार भी सात्विक होते हैं। अभक्ष्य भोजन नहीं करना चाहिए। अशुद्ध भोजन से विचार भी दूषित हो जाते हैं।