भावरकोल: जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है। फिर वह चाहे राजा हो या रंक। शेरपुर कला गाव के व्यायामशाला प्रांगण में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में भागवत कथा के दूसरे दिन ये पवन देव महाराज ने अपने प्रवचन में कहे।
उन्हाेंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि कर्म का फल आज नहीं तो कम भोगना ही पड़ता है। सुदामा उनके प्रिय सखा थे। बचपन में उन्होंने गुरु मां द्वारा दिए गए चने को अकेले खाने का पाप किया था। भगवान से छिपा कर चना खाए गए इस कर्म का फल उन्हें अत्यंत गरीबी के रूप में भोगना पड़ा। उनके परम मित्र होने के बाद भी समय से पहले भगवान सुदामा की दयनीय दशा को दूर नहीं कर पाए। जबकि वे स्वयं उनकी हालत पर दुखी थे। जब द्वारिकापुरी में दोनों का मिलन हुआ तो पग पखारते हुए कृष्ण उनकी दयनीय दशा देख इतना रोए कि उनके पैरों में आंसुओं की धार बह गई। इसी तरह कर्म फल से भवान स्वयं भी नहीं बचे
त्रेतायुग में भगवान विष्णु अवतार श्रीराम ने बालि को छुप का मारने का पाप किया था। द्वापर युग में कृष्ण जन्म में उन्हें वन में तपस्या के दौरान एक शिकारी ने हिरण समझ कर विष बुझे तीर से घायल कर दिया। व्याध ने जब सच्चाई जानी तो वह उनके चरणों में गिर गया। इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें पिछले जन्म का किस्सा बताते हुए कहा कि यह उनके द्वारा किए गए पाप का कर्म फल है। इस अवसर पर यज्ञाधीश कन्हैया दास महाराज, सजंय जी महाराज, मुख्य यजमान ओमप्रकाश राय, आचार्य रोहित सांस्कृत्यायन, प्रेमनाथ शुक्ला, आनन्द राय पहलवान, चिंटू उपाध्याय, चौकी इंचार्ज मनोज मिश्रा, पवन यादव ,राजेश राय, सीमा राय, डिंपल राय, रोली राय आदि लोग मौजूद रहे।