गाज़ीपुर न्यूज़

लोकतंत्र के बदलते स्वरूप पर आत्मचिंतन की जरूरत :अजय कुमार यादव’परिवर्तन’

कासिमाबाद। युवा शक्ति एकता मंच कार्यकारिणी समिति के अध्यक्ष और राष्ट्रीय यादव सेना गाजीपुर के प्रवक्ता अजय कुमार यादव ‘परिवर्तन’ ने लोकतंत्र के बदलते स्वरूप पर दैनिक फॉर मीडिया से फोनवर्ता में प्रकाश डालते हुए  बताया कि पिछले  74 वर्षो  के सफर में भारत का लोकतंत्र कितना सफल रहा, यह देखने के लिये इन वर्षों का इतिहास, देश की उपलब्धियाँ, देश का विकास, सामाजिक-आर्थिक दशा, लोगों की खुशहाली आदि पर गौर करने की ज़रूरत है। भारत का लोकतंत्र बहुलतावाद पर आधारित राष्ट्रीयता की कल्पना पर आधारित है। यहाँ की धार्मिक विविधता ही इसकी खूबसूरती है। यदि सिर्फ दक्षिण एशिया को ही लें तो, भारत अन्य देशों से अलग धर्मनिरपेक्षता का एक बेहद सशक्त पक्ष रहा है।

पिछले 74 सालों में देश ने बहुत प्रगति की है, काफी विकास किया है। देशवासियों का जीवन-स्तर पहले से बेहतर हुआ है। सभी धर्मों, जातियों और वर्गों के लोग एक ही समाज में एक साथ रहते हैं। कृषि, औद्योगिक विकास, शिक्षा, चिकित्सा, अंतरिक्ष विज्ञान जैसे कई क्षेत्रों में भारत ने कामयाबी हासिल की है। आज हमारे पास विदेशी मुद्रा का विशाल भंडार है। लेकिन किसी लोकतंत्र की सफलता को आँकने के लिये ये पर्याप्त नहीं हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि देश का विकास तो हुआ है, लेकिन देखना यह होगा कि विकास किन वर्गों का हुआ। सामाजिक समरसता के धरातल पर विकास का यह दावा कितना सटीक बैठता है। दरअसल, किसी लोकतंत्र की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि सरकार ने गरीबी, निरक्षरता, सांप्रदायिकता, लैंगिक भेदभाव और जातिवाद को किस हद तक समाप्त किया है। लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति क्या है और सामाजिक तथा आर्थिक असमानता को कम करने के क्या-क्या प्रयास हुए हैं।

राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की लगभग 36 करोड़ आबादी अभी भी स्वास्थ्य, पोषण, स्कूली शिक्षा और स्वच्छता से वंचित है। दूसरी तरफ, देश का एक तबका ऐसा है जिसे किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। लैंगिक भेदभाव भी बहुत बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है।लोकतंत्र का चौथा खंभा माने जाने वाले मीडिया की आज़ादी भी सवालों के घेरे में है। अन्य बातों के अलावा सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद और कट्टरवाद को भी प्रश्रय मिला। इसकी वज़ह से असहिष्णुता की प्रवृत्ति भी बढ़ी है। जातिवाद की जड़ें लगातार गहरी होती जा रही हैं। ऐसी तमाम और चीजें हैं जो लोकतंत्र की मजबूती में बाधक है चाहे वह पुलिस प्रशासन की कार्यशैली हो यह शासन की निगरानी।निस्संदेह इस तरह की परिस्थितियाँ लोकतंत्र की कामयाबी की राह में बाधक बनती है। आज हमें ईमानदारी से आत्मचिंतन की जरूरत है।