गाजीपुर: बिक्रम संवत के आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस पर तीन-दिवसीय जितिया व्रत किया जाता है। पुत्रों की सलामती के लिए रखा जाने वाला जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत 10 सितंबर को है, 3 दिन तक चलने वाले इस कठिन व्रत की शुरुआत कल से नहाए-खाए से शुरू हो गई है, आज उपवास करने वाले लोग पूरे दिन निर्जला व्रत रहेंगे और कल पारण करेंगे। व्रत कल सूर्यास्त के बाद से शुरू हो हो गया है।
इस विषय मे एक्सपर्ट पंo अभिषेक तिवारी ने दैनिक फॉर मीडिया से दूरसंचार के माध्यम से खास बातचीत में विस्तार से बताया कि 10 सितंबर- दोपहर 2 बजकर 5 मिनट से अगले दिन 11 सितंबर को 4 बजकर 34 मिनट तक रहेगा।पारण का शुभ मुहूर्त- 11 सितंबर को दोपहर 12 बजे तक पारण किया जाएगा।
व्रत विधि
व्रत के दूसरे दिन जीमूतवाहन की कुशा से प्रतिमा बनाई जाती है।
इसके बाद मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है।
फिर उस मूर्ति पर धूप-दीप, चावल, पुष्प, सिंदूर आदि अर्पित किया जाता है।
जिउतिया व्रत की कथा सुनी जाती है।
पुत्र की लंबी आयु और कामयाबी की प्रार्थना की जाती है।
जितिया व्रत के पीछे की कहानी
जितिया व्रत का उल्लेख महाभारत में मिलता है, दरअसल अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए उत्तरा की गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्नास्त्र का इस्तेमाल किया। उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना जरूरी था। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने उस बच्चे को गर्भ में ही दोबारा जीवन दिया। गर्भ में मृत्यु को प्राप्त कर फिर से जीवन मिलने के कारण उसका नाम जीवित पुत्रिका रखा गया। बाद में यह राजा परीक्षित के नाम से जाना गया।
जितिया व्रत का महत्व
इस व्रत का खासा महत्व है, इस व्रत से निःसंतान व्यक्ति को भी संतान सुख प्राप्त होता है, ये पर्व मुख्य रूप से यूपी, बिहार और झारखंड में मनाया जाता है। आज सूर्यास्त के बाद से व्रत रखने वाले लोग कुछ नहीं खाएंगे और कल बिना पानी का व्रत शुरू होगा, आज भोजन में बिना नमक या लहसुन आदि के सतपुतिया (तरोई) की सब्जी, मंडुआ के आटे के रोटी, नोनी का साग, कंदा की सब्जी और खीरा खाने की पंरपरा है तो वहीं व्रत के आखिरी दिन भात, मरुला की रोटी और नोनी का साग बनाकर खाने की परंपरा है। सा कहा जाता है कि जो इस व्रत की कथा को सुनता है वह जीवन में कभी संतान वियोग या संतान का कष्ट्र नहीं भोगता।