करीमुद्दीनपुर थाना अंतर्गत बथोर गांव में चौथी मुहर्रम को इमामबाड़ा हुसैनियां में आयोजित मजलिस को संबोधित करते हुए मौलाना नदीम अब्बास साहब ने कहा कर्बला में यजीदी फौज से घिरे इमाम हुसैन ने कहा था कि मुझे हिन्द चले जाने दो। इमाम जानते थे कि हिन्द के लोग अमन पसंद है वे महापुरुषों का सम्मान करते हैं। आज भी ऐसी मान्यता है कि मुहर्रम का चांद होने के बाद इमाम हुसैन हिन्द में आ जाते हैं। कहा कि कर्बला के रास्ते में यजीदी फौज ने इमाम के काफिले को रोक लिया और कर्बला की ओर चलने के लिए मजबूर किया। लेकिन अफसोस है कि जब दसवीं मुहर्रम को इमाम इन्हीं यजीदियों से अपने छह माह के बच्चे के लिए एक घूंट पानी मांगने के लिए गए तो पानी की जगह तीर चलाकर मासूम को शहीद कर दिया गया। इसमें इस्लाम के पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब (सल्ललहो अलैह व सल्लम) के प्रिय नवासे हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के कर्बला के मैदान में न्याय, लोकतंत्र और सच्चाई के लिए शहादत का वाकया बयान सुनकर अकीदतमंद रो पड़े। कर्बला की याद इसलिए मनाना जरूरी है कि आज भी इस्लाम के नाम पर जुल्म और आतंक फैलाने वाली यजीदी विचारधारा के है। इमाम के चाहने वाले जियो और जीने दो की विचारधारा में विश्वास रखते हैं। दुनिया में इमाम हुसैन को चाहने वाले हर धर्म-संप्रदाय में मौजूद हैं। इसके बाद मातम का आयोजन हुआ। लोगों ने नौहा पढ़कर व मातम कर कर्बला के शहीदों को पुरसा पेश किया।